योग की परिभाषा

योग का अर्थ विभिन्न प्राचीन ग्रंथों में बहुतायत अर्थों में व्याख्यानित किया गया है।

महर्षि व्यास : योग को आत्म-संयम के रूप में व्याख्यानित किया गया है, जो विवेक, वैराग्य, और ध्यान के माध्यम से आत्मा को प्राप्त करने की कल्पना करता है।
पतंजलि योगसूत्र : यहाँ पर योग को 'चित्त-वृत्ति निरोध' के माध्यम से मानव मन के नियंत्रण और निर्माण के लिए एक मार्ग के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
महोपनिषद : यहाँ योग को आत्मा और परमात्मा के एकता के माध्यम से मुक्ति का साधना करने का उपाय माना गया है।
श्रीमद्भगवद्गीता: योग को कर्म, भक्ति, और ज्ञान के माध्यम से ईश्वर के साथ एकाग्रता का साधना माना गया है।
वशिष्ठ सम्हिता : योग को जीवन में संतुलन और आत्म-संयम के माध्यम से मन की स्थिरता और अंतर्मुखता की प्राप्ति के रूप में वर्णित किया गया है।
कठोपनिषद : यहाँ योग को आत्मा के साथ एकाग्रता और उन्नति का साधना माना गया है।
अग्नि पुराण: योग को आत्म-ज्ञान, ध्यान, और साधना के माध्यम से आत्मा के साथ संयम और मोक्ष की प्राप्ति का साधना माना गया है।

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने

Popular Items

कर्मयोग