मन का नियंत्रण


mind control yoga exercise

मन की चंचलता या अस्थिर मन

किसी भी कार्य चाहे वह किसी भी प्रकार का भी क्या न हो उसको करते समय मन की एकाग्रता का होगा आवश्यक है। क्योंकी मन बहुत ही चंचल होता है । श्रीमद्भगवद्गीता (६/३४ ) में मन को अति चंचल, बलवान, हठी, अशांत बताया हैं। वायु से अधिक कठिन मन पर निरन्तरं पाना है। वायु की गति को रोक सकते है पर मन की गति को नहीं। 

चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलव ढम् ।
 तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम् ॥34॥

सबसे तीज गति अगर किसी की है तो वह मन ही है। मन एक पल में यहाँ तो दूसरे क्षण में वहाँ, पूरी पृथ्वी ब्रह्माण्ड के चक्कर लगता रहता है। मन ही ने विश्वामित्र और अगस्त जैसे तपस्वियों कोधराशाही कर दिया था। मन सब इन्द्रियों को नियंत्रण करके शरीर में खलबली मचा देता हैं।  इसे मक्ष्मण जी जैसे मति,  हनुमान जी जैसे योद्धा, भीष्म पितामह जैसे महायोगी ही जीत सके है। इसी के निरोध को योग कहते है। जो इसका निरोध कर सकता है, वोही ईश्वर के दर्शन कर सकता है। 

शास्त्रों और विद्वानों ने इनको स्थिर करने के कई उपाय बहाए है। कुछ नियम नीचे लिखे गए है।
प्रश्न : अशांत मन को कैसे नियंत्रण या स्थिर करे?

मन को स्थिर करने के उपाय 

(१) आप विष्णु, ॐ, राम, कृष्ण, शिव, या दैवी माँ कोई भी एक नाम लीजिए और उसे सौ तक गिनिए । अब सौ से उलटा एक तक गिनते हुए आइए। इस तरह  अभ्यास बढ़ते बढ़ते हजार तक गिने। आप अपने मन में शांति और स्थिरता का अनुभव करेगें। 
(२) प्राणायाम करते हुए कुम्बक की क्रिया में जहाँ प्राण रुकेगा वहाँ मन भी स्थिर होगा। यह निश्चित बात है। मनः साधन की गिनती करते हुए जब आप एक हजार तक पहुँचे तब वहीँ चुप होकर बैठ जावें। मन को भटकने न दें। इसके बाद लौटकर आ जाएँ तब भी चुप होकर मन को भीतर ही रोककर रखें और कुछ देर तक हृदय और  नाभि चक्र का ध्यान करें। इस अभ्यास से मन कुछ दिनों में शांत और स्थिर हो जाएगा। 
(३) धरती या कोई समतल सतह पर बिना तकिये के सीधे लेट जाये और शरीर और वस्त्रो को ढ़ीला कर ले। पश्चात् प्राण को उल्टा खींच कर पेट में आवें, फिर छाती में आवें , फिर पेट में नाभि तक घुमाये। ऐसा करने से आपका नाभि सूर्य प्रकाशित होगा. अभ्यास से मन स्थिर होगा। 
मन का नियंत्रण इन दो प्रकार से भी किया जा सकता है। एक तो मन की गति का मार्ग परिवर्तित करके और दूसरा उसे गतिहीन करके किया जा सकता है। चुकी मन को गतिहीन करना सम्भव नहीं है। इसलिए इसका मार्ग परिवर्तित करके इसे इच्छित कार्य में लगाया जा सकता है. इसी कारण भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कर्मयोग और भक्तियोग को ही मन को वश करने के लिए श्रेष्ठ उपाए बताया है। 
मन का नियंत्रण इन दो प्रकार से भी किया जा सकता है। एक तो मन की गति का मार्ग परिवर्तित करके और दूसरा उसे गतिहीन करके किया जा सकता है। चुकी मन को गतिहीन करना सम्भव नहीं है। इसलिए इसका मार्ग परिवर्तित करके इसे इच्छित कार्य में लगाया जा सकता है. इसी कारण भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कर्मयोग और भक्तियोग को ही मन को वश करने के लिए श्रेष्ठ उपाए बताया है। 

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